Wednesday 4 January 2023

ज़िंदगी

ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा है मैंने साए को जिस्म से जुदा होते देखा है मैंने अब तो एतबार शब्द का अर्थ ही समझ नहीं आता क्योंकि अर्थों का अनर्थ होते देखा है मैंने मैं तो चल पड़ी थी अपना लक्ष्य तय कर के अचानक हवाओं को रुख बदलते देखा है मैंने साए को क्या दोष दूँ, गर रोशनी ही साथ छोड़ दे इसलिए अंधेरी रात में बैठकर यह कलाम लिखा है मैने अगर ज़िंदगी मिली है तो जीना ही पड़ेगा इसलिए रोना नहीं, हँसना अच्छे से सीखा है मैने दुनिया में ज़ख्म देने वाले तो बहुत हैं बहुत कम को मरहम लगाते देखा है मैंने बातें तो दोस्ती में बड़ी बड़ी बनाते हैं लोग बहुत कम को ही निभाते हुए देखा है मैंने प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते,रह गई कोरी ये तो बातें हर शख़्स को मतलब का साथ निभाते देखा है मैंने....

Sunday 31 July 2022

मन

 अकेला मन कितना भारी हो जाता है

तमाम बोझ मानो पलकों पे डाल के

बुझे हुए ख्वाबों से ज़ोर आजमाइश करता है..

और फिर नाकाम हो कर बरस पड़ता है

जलते तपते मरुस्थल सी देह पर

मन को सुलगता सा छोड़ कर ...!!


धूप

 ज़रा सी धूप छिटक दो 

तुम्हारे चेहरे के सूरज से,

रेत के धोरों पर ऐसा सुनहरा समंदर

देखा न होगा किसी ने .....!!!

Friday 21 May 2021

होली 2020

 दिलवालों की दिल्ली देखो

आज लहू से नहाई है

फागुन के महीने में अब की

ख़ून की होली आयी है.

फर्क़ न कोई पाया होगा

रंग रक्त का लाल ही होगा

प्रेम, ख़ुशी के मौके पर क्यूँ

नफ़रत आज फैलाई है?

जाति - धर्म के बंधन तोड़ो

बोल एकता के सब बोलो

चंद जनों के स्वार्थ ने मिलकर

ये दीवार बनाईं हैं.

भूल सभी अन्तर और बैर

दुश्मन की न होगी ख़ैर

एक रंग में नाचो झूमो

मस्ती की ऋतु आयी है....!! 

Tuesday 16 February 2021

 तुम मुझे उस समय भी सुन सकती हो

जब सूरज का कलेजा

झील की सतह पर डूबते उतरते

सतरंगी हुआ जाता है

और तुम्हें लगता है कि

पहाड़ों की परछाई सिर्फ़ काली सफ़ेद होती हैं...!

Saturday 2 May 2020

तुमने प्यास को पानी में बदला
मैंने फिर से उसे प्यास बना दिया 
और यूँ ही 
एक और जन्म का इंतज़ार दे गई 
ये आधी अधूरी सी मुलाक़ात....! 

Sunday 26 April 2020

देखे बहुत मैंने मरुस्थल तपते
सूरज से अग्नि की बरसात होते देखी कितनी ही बार
देखा बहुत बार खौलता समुद्र भाप बनकर उड़ता हुआ
देखे ज्वालामुखी
 पृथ्वी की पथरीली सतह तोड़कर बाहर निकलते -रेत, मिट्टी, पानी, हवा - सब देखे मैंने
तपन के अंतिम छोर तक...
लेकिन कल रात स्वप्न में जब
तुम्हारी देह को छुआ
तब महसूस हुआ कि कहीं नहीं तपन इतनी
तुम्हारी कांची देह जितनी
न रेत, न मिट्टी, पानी न हवा
नहीं - कुछ नहीं तपता
तुम्हारी देह से ज़्यादा....!!